Story of the day_Janta curfew_2020
महर्षि कपिल ने एक जगह ऐसा कहा है कि मनुष्यों के कुल वजन से 20 गुना से अधिक वजन पशुओं जलचर नभचर सांप आदि का होना चाहिए तभी मनुष्य पृथ्वी पर रह सकता है। यह अनुपात गड़बड़ाते ही प्रकृति आपदा द्वारा मनुष्य का विनाश रच देती है। इसलिए पशु हिंसा पृथ्वी को बहुत ही गहरा आघात पहुंचाती है। पृथ्वी को इसीलिए गौ कहा गया है, क्योंकि गौ पर अत्याचार सीधा पृथ्वी पर अत्याचार है। गाय की हत्या कितनी घातक होती है यह बताने की जरूरत नहीं है। हत्या किए जा रहे पशु की आह से सारी समष्टि चेतना चीत्कार करती है, शास्त्रों में साफ साफ आया है कि यह आह ही भूकम्प तूफान महामारी बनकर अपना बदला लेती है। सारे देवी देवताओं के वाहन भी पशु हैं और पशुओं के प्रति अपनत्व सिखाते हैं।
सर्पों का इस संसार में बहुत ही गहरा रोल होता है, इन्हीं विषधर नागों से पृथ्वी स्थिर है, महादेव यूँ ही सर्पों को गले में लिपटाकर नहीं रखते, विष्णु जी यूँ ही शेषनाग की छाया में नहीं रहते, इसलिए पुराण पृथ्वी को शेषनाग के फण पर टिका बताता है। नाग धर्म को स्थिर बनाए रहता है, इसलिए सारे देवमन्दिरों की रक्षा का भार भी नागों पर ही होता है। पद्मनाभस्वामी मन्दिर का खजाना भी इन्हीं की छत्रछाया में है। नाग की हत्या हज़ार वर्ष तक भी पीछा नहीं छोड़ती, जिसके नागदोष होता है उसे असहनीय कष्ट होता है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। मनुष्य के जीवन के कच्चे चिट्ठे को इसीलिए ज्योतिष "कुण्डली" कहता है जो सर्प का कठोर बंधन होती है। इसलिए सर्प को खुश रखने का हमेशा हिंदुओं ने यत्न किया है। जबकि चीन जैसा पाशविक देश सर्पों की हत्या कर उन्हें खा रहा था, सारा यूरोप गौमांस खा कर अपनी बर्बादी को निमंत्रण दे रहा था। सर्पहत्या, गौहत्या और पशुवध के वीभत्स पाप का घड़ा भरता है तो बिना आहट किए काल बनकर निगल जाता है। इससे स्पष्ट प्रमाण पृथ्वी नहीं दे सकती, प्रकृति एफिडेविट बनाकर कोर्ट में जमा नहीं करेगी कि इन पशुओं की क्रूरहत्या की एवज में मैं महामारी बनकर आई हूँ।
Story of the day_Janta curfew_2020
महर्षि कपिल ने एक जगह ऐसा कहा है कि मनुष्यों के कुल वजन से 20 गुना से अधिक वजन पशुओं जलचर नभचर सांप आदि का होना चाहिए तभी मनुष्य पृथ्वी पर रह सकता है। यह अनुपात गड़बड़ाते ही प्रकृति आपदा द्वारा मनुष्य का विनाश रच देती है। इसलिए पशु हिंसा पृथ्वी को बहुत ही गहरा आघात पहुंचाती है। पृथ्वी को इसीलिए गौ कहा गया है, क्योंकि गौ पर अत्याचार सीधा पृथ्वी पर अत्याचार है। गाय की हत्या कितनी घातक होती है यह बताने की जरूरत नहीं है। हत्या किए जा रहे पशु की आह से सारी समष्टि चेतना चीत्कार करती है, शास्त्रों में साफ साफ आया है कि यह आह ही भूकम्प तूफान महामारी बनकर अपना बदला लेती है। सारे देवी देवताओं के वाहन भी पशु हैं और पशुओं के प्रति अपनत्व सिखाते हैं।
सर्पों का इस संसार में बहुत ही गहरा रोल होता है, इन्हीं विषधर नागों से पृथ्वी स्थिर है, महादेव यूँ ही सर्पों को गले में लिपटाकर नहीं रखते, विष्णु जी यूँ ही शेषनाग की छाया में नहीं रहते, इसलिए पुराण पृथ्वी को शेषनाग के फण पर टिका बताता है। नाग धर्म को स्थिर बनाए रहता है, इसलिए सारे देवमन्दिरों की रक्षा का भार भी नागों पर ही होता है। पद्मनाभस्वामी मन्दिर का खजाना भी इन्हीं की छत्रछाया में है। नाग की हत्या हज़ार वर्ष तक भी पीछा नहीं छोड़ती, जिसके नागदोष होता है उसे असहनीय कष्ट होता है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। मनुष्य के जीवन के कच्चे चिट्ठे को इसीलिए ज्योतिष "कुण्डली" कहता है जो सर्प का कठोर बंधन होती है। इसलिए सर्प को खुश रखने का हमेशा हिंदुओं ने यत्न किया है। जबकि चीन जैसा पाशविक देश सर्पों की हत्या कर उन्हें खा रहा था, सारा यूरोप गौमांस खा कर अपनी बर्बादी को निमंत्रण दे रहा था। सर्पहत्या, गौहत्या और पशुवध के वीभत्स पाप का घड़ा भरता है तो बिना आहट किए काल बनकर निगल जाता है। इससे स्पष्ट प्रमाण पृथ्वी नहीं दे सकती, प्रकृति एफिडेविट बनाकर कोर्ट में जमा नहीं करेगी कि इन पशुओं की क्रूरहत्या की एवज में मैं महामारी बनकर आई हूँ।
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