Heart touched thoughts
*जी नहीं पातीं...*
और
*चैन से मर भी नहीं पातीं...*
अटका रह जाता *उसका मन...*
अपनी *औलाद* में,
*ससुराल* या *परिवार* में...
*करवाचौथ* की *तपस्या,*
या फिर *तीज* में, *त्यौहार* में...
*माँ के आँचल* में,
*मायके की चहल पहल* में...
*घर के आंगन* में,
*चार दीवारों के प्रांगन* में...
जब तक जीती हैं
*भागा दौड़ी* में ही
निकल जाता है *वक़्त...*
और
जब आखिर चली जाती हैं तो,
छोड़ जाती हैं...
अपना *अंश...* अपना *वंश...*
अपनी *यादें...* अपनी *निशानियाँ...*
*ढेर सारी कहानियाँ...*
कुछ *बातें...* कुछ *वादे...*
अपना सब *कुछ..*
छोड़ जाती हैं,
छोड़ जाती है घर के कोने-कोने में,
*दुनिया के दिखावटी रुख को...*
और *थोड़ा-थोड़ा ख़ुद को...* ✍️✍️kd
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