रामायण
मेघनाद सम कोटि सत,जोधा रहे उठाइ।
जगदाधार सेष किमि उठै,चले खिसिआइ
सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू,जारइ भुवन चारिदस आसू
सक संग्राम जीति को ताही,सेवहिं सुर नर अग जग जाही
यह कौतूहल जानइ सोई,जा पर कृपा राम कै होए❤️
मेघनाद के समान सौ करोड़ अगणित योद्धा उन्हें उठा रहे हैं, परन्तु जगत् के आधार जिनके फण पर पृथ्वी टिकती है वो श्री आदिशेष श्रीलक्ष्मणजी उनसे कैसे उठते? तब वे लजाकर चले गए।
शिवजी कहते हैं- हे गिरिजा सुनो, प्रलयकाल में जिन शेषनाग के क्रोध की अग्नि चौदहों भुवनों को तुरंत ही जला डालती है और देवता, मनुष्य तथा समस्त चराचर जीव जिनकी सेवा करते हैं, उनको संग्राम में कौन जीत सकता है। इस लीला को वही जान सकता है, जिस पर श्री रामजी की कृपा हो❤️
रामायण
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