जय बजरंगबली
श्री हनुमान जी ने अपनी सभी लीलाओं में दूसरो पर उपकार करने के अलावा और किया क्या? अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा। सुग्रीव को सिंहासन पर बैठाया, विभीषण को सिंहासन पर बैठाया, श्री राम को सिंहासन पर बैठाया और स्वयं श्री राम के चरणों में बैठना निश्चित किया। अतः अनंत ऊंचाइयों के सिंहासन पर बिठाने वाले रिद्धि सिद्धि भक्ति धर्म के खजांची एकमात्र श्री हनुमानजी महाराज ही हैं। हनुमान जी ने माता सीता की खोज की, संजीवनी लाकर लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा की, भरत जी को श्री राम की सूचना देकर उन्हें बचाया। हनुमान जी के उपकारों को स्मरण करके श्री राम की आँखे भर आती है, कहते है -
"सुनु कपि तोहि समान उपकारी।
नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।।
प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा।।"
श्री राम कहते हैं कि, "तुम्हारे प्रत्येक उपकार पर प्राण दे सकता हूँ तो भी शेष उपकारों के लिए तो ऋणी ही रह जाऊँगा न! बताओ तुम्हे फिर क्या दूँ? श्री राम की आँखों से आंसू बह रहे थे (लोचन नीर पुलक अति गाता।) हनुमान जी ने प्रभु की विवशता को समझा और कहा,
"नाथ भगति अति सुखदायनी।
दहु कृपा करि अनपायनी।।"
भक्ति के परिणाम का चरम इससे बढ़कर क्या होगा!
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥
मैं पवनकुमार श्री हनुमान्जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं॥
श्री हनुमान जयंती की सब को हार्दिक शुभकामनाएं...
जय बजरंगबली
जय श्री राम
जय बजरंगबली
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